पार्वती
पार्वती,
उमा या गौरी
मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य,
सद्भाव, विवाह, संतान की
देवी हैं। देवी
पार्वती कई अन्य
नामों से जानी
जाती है, वह
सर्वोच्च हिंदू देवी परमेश्वरी
आदि पराशक्ति (शिवशक्ति)
की साकार रूप
है और शाक्त
सम्प्रदाय या हिन्दू
धर्म मे एक
उच्चकोटि या प्रमुख
देवी है और
उनके कई गुण,रूप और
पहलू हैं। उनके
प्रत्येक पहलुओं को एक
अलग नाम के
साथ व्यक्त किया
जाता है, जिससे
उनके भारत की
क्षेत्रीय हिंदू कहानियों में
10000 से अधिक नाम
मिलते हैं। लक्ष्मी
और सरस्वती के
साथ, वह हिंदू
देवी-देवताओं (त्रिदेवी)
की त्रिमूर्ति का
निर्माण करती हैं।
माता पार्वती हिंदू
भगवान शिव की
पत्नी हैं ।
वह पर्वत राजा
हिमांचल और रानी
मैना की बेटी
हैं। पार्वती का
जन्म स्थान उत्तराखंड
के चमोली जिले
में माना जाता
है जहां उसे
नंदा के रूप
में पूजा जाता
है और इसी
कारण वहां हर
12 सालों में नंदा
राजजात का आयोजन
किया जाता है।
पार्वती हिंदू देवताओं गणेश,
कार्तिकेय, अशोकसुंदरी, ज्योति
और मनसा देवी
की मां और
अय्यप्पा की सौतेली
माता हैं। पुराणों
में उन्हें श्री
विष्णु की बहन
कहाँ गया है।
वे ही मूल
प्रकृति और कारणरूपा
है। शिव विश्व
के चेतना है
तो पार्वती विश्व
की ऊर्जा हैं।
पार्वती माता जगतजननी
अथवा परब्रह्मस्वरूपिणी है।
नामवाली
ललिता सहस्रनाम में पार्वती
(ललिता के रूप
में) के 1,000 नामों
की सूची है।
पार्वती
के सबसे प्रसिद्ध
दो में से
एक उमा और
अपर्णा हैं। स्कन्द
पुराण के अनुसार,देवी पार्वती
के द्वारा दुर्गमसुर
को मारने के
बाद देवी पार्वती
का नाम दुर्गा
पड़ा। उमा नाम
का उपयोग सती
(शिव की पहली
पत्नी, जो पार्वती
के रूप में
पुनर्जन्म हुआ है)
के लिए किया
जाता है, रामायण
में देवी पार्वती
को उमा नाम
से भी संबोधित
किया गया है,देवी पार्वती
को अपर्णा के
रूप में संदर्भित
किया जाता है
('जो सबका भरण
पोषण करती है')। देवी
पार्वती अंबिका ('प्रिय मां'),
शक्ति ('शक्ति'), माताजी ('पूज्य
माता'), माहेश्वरी ('महान देवी'),
दुर्गा (अजेय), भैरवी ('क्रूर'),
भवानी ('उर्वरता') आदि नामों
से जानी जाती
हैं। पार्वती प्रेम
और भक्ति की
देवी हैं, या
कामाक्षी; प्रजनन, बहुतायत और
भोजन / पोषण की
देवी अन्नपूर्णा कहा
गया है ।
देवी पार्वती एक
क्रूर महाकाली भी
है जो तलवार
उठाती है, गंभीर
सिर की माला
पहनती है, और
अपने भक्तों की
रक्षा करती है
और दुनिया और
प्राणियों की दुर्दशा
करने वाली सभी
बुराईयों को नष्ट
करती है। देवी
पार्वती को स्वर्ण,
गौरी, काली या
श्यामा के रूप
में संबोधित किया
जाता है, इनका
एक शांत रूप
गौरी है, तो
दूसरा भयंकर रूप
काली है।
इतिहास में पार्वती
पर्वती शब्द वैदिक साहित्य में प्रयोग नही किया जाता था। इसके बजाय, अंबिका, रुद्राणी का प्रयोग किया गया है।[ उपनिषद काल (वेदांत काल) के दूसरे प्रमुख उपनिषद केनोपनिषद में देवी पार्वती का जिक्र मिलता है,वहाँ उन्हें हेमवती उमा नाम से जाना जाता है तथा वहां पर उन्हें ब्रह्मविद्या भी जानने को मिलता है और इन्हें दुनिया की माँ की तरह दिखाया गया है। यहां देवी पार्वती को सर्वोच्च परब्रह्म की शक्ति, या आवश्यक शक्ति के रूप में प्रकट किया गया है। उनकी प्राथमिक भूमिका एक मध्यस्थ के रूप में है, जो अग्नि, वायु और वरुण को ब्रह्म ज्ञान देती है, जो राक्षसों के एक समूह की हालिया हार के बारे में घमंड कर रहे थे। देवी का सती-पार्वती नाम महाकाव्य काल (400 ईसा पूर्व -400 ईस्वी) में प्रकट होता है,जहाँ वह शिव की पत्नी है। वेबर का सुझाव है कि जैसे शिव विभिन्न वैदिक देवताओं रुद्र और अग्नि का संयोजन है, वैसे ही पुराण पाठ में पार्वती रुद्र की पत्नियों की एक संयोजन है। दूसरे शब्दों में, पार्वती की प्रतीकात्मकता और विशेषताएं समय के साथ उमा, हेमावती, अंबिका,गौरी को एक पहलू में और अधिक क्रूर, विनाशकारी काली, नीरति के रूप में विकसित हुईं।
शारीरिक रूप और प्रतीक
देवी पार्वती को आमतौर
पर निष्पक्ष, सुंदर और परोपकारी के रूप में दर्शाया जाता है। वह आमतौर पर एक लाल पोशाक
(अक्सर एक साड़ी) पहनती है ।और क्रोध अवस्था मे काली के रूप में भी दर्शाया गया है।
जब शिव के साथ चित्रित किया जाता है, तो वह आमतौर पर दो भुजाओं के साथ दिखाई देती है,
लेकिन जब वह अकेली हो तो उसे चार हाथों में चित्रित किया जा सकता है। इन हाथों में
त्रिशूल, दर्पण, माला, फूल (जैसे कमल) हो सकते हैं। प्राचीन मंदिरों में, पार्वती की
मूर्ति अक्सर एक बछड़े या गाय के पास चित्रित होती है - भोजन का एक स्रोत। उनकी मूर्ति
के लिए कांस्य मुख्य धातु रहा है, जबकि पत्थर आम सामग्री रहा है।
देवी
पार्वती के अन्य रूप
कई हिंदू कहानियां पार्वती के वैकल्पिक पहलुओं को प्रस्तुत करती हैं, जैसे कि क्रूर, हिंसक पहलू। उनका रूप एक क्रोधित, रक्त-प्यासे, उलझे हुए बालों वाली देवी, खुले मुंह वाली और एक टेढ़ी जीभ के साथ किया गया है। इस देवी की पहचान आमतौर पर भयानक महाकाली (समय) के रूप में की जाती है। लिंग पुराण के अनुसार, पार्वती ने शिव के अनुरोध पर एक असुर (दानव) दारुक को नष्ट करने के लिए अपने नेत्र से काली को प्रकट किया। दानव को नष्ट करने के बाद भी, काली के प्रकोप को नियंत्रित नहीं किया जा सका। काली के क्रोध को कम करने के लिए, शिव उनके पैरों के नीचे जा कर सो गए,जब काली का पैर शिव के छाती पर पड़ा तो काली का जीभ शर्म से बाहर निकल आया, और काली शांत हो गई। स्कंद पुराण में, पार्वती एक योद्धा-देवी का रूप धारण करती हैं और दुर्ग नामक एक राक्षस को हरा देती हैं जो भैंस का रूप धारण करता है। इस पहलू में, उन्हें दुर्गा के नाम से जाना जाता है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार, पार्वती अन्य सभी देवियो की वंशावली हैं। इन्हें कई रूपों और नामों के साथ पूजा जाता है। देवी पार्वती का रूप या अवतार उसके भाव पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए:
दुर्गा पार्वती का एक भयानक रूप है, और कुछ ग्रंथों में लिखा है कि पार्वती ने राक्षस दुर्गमासुर का वध किया था और इसी कारण वे दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हुई थीं। नवदुर्गा नामक नौ रूपों में दुर्गा की पूजा की जाती है। नौ पहलुओं में से प्रत्येक में पार्वती के जीवन के एक बिंदु को दर्शाया गया है। वह दुर्गा के रूप में भी राक्षस महिषासुर, शुंभ और निशुंभ के वध के लिए भी पूजी जाती हैं। वह बंगाली राज्यों में अष्टभुजा दुर्गा, और तेलुगु राज्यों में कनकदुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं।
महाकाली पार्वती का सबसे
क्रूर रूप है,यह समय
और परिवर्तन की
देवी के रूप
में, साहस और
अंतिम सांसारिक प्रलय
का प्रतिनिधित्व करती
है। काली, दस
महाविद्याओं में से
एक देवी हैं,जो नवदुर्गा
की तरह हैं
जो पार्वती की
अवतार हैं। काली
को दक्षिण में
भद्रकाली और उत्तर
में दक्षिणा काली
के रूप में
पूजा जाता है।
पूरे भारत में
उन्हें महाकाली के रूप
में पूजा जाता
है। वह त्रिदेवियों
में से एक
देवी है और
त्रिदेवी का स्रोत
भी है। वह
परब्रह्म की पूर्ण
शक्ति है, क्योंकि
वह सभी प्राण
ऊर्जाओं की माता
है। वह आदिशक्ति
का सक्रिय रूप
है। वह तामस
गुण का प्रतिनिधित्व
करती है, और
वह तीनो गुणों
से परे है,
महाकाली शून्य अंधकार का
भौतिक रूप है
जिसमें ब्रह्मांड मौजूद है,
और अंत में
महाकाली सबकुछ अपने भीतर
घोल लेती है।
वह त्रिशक्ति की
"क्रिया शक्ति" हैं, और
अन्य शक्ति का
स्रोत है। वह
कुंडलिनी शक्ति है जो
हर मौजूदा जीवन
रूप के मूल
में गहराई से
समाया रहता है।
देवी
पार्वती का उपनिषद (वेदांत) में वर्णन
108 उपनिषदों में से
दूसरे सबसे प्रमुख उपनिषद "केनोपनिषद" के तृतिया और चतुर्थ खण्ड में देवी
पार्वती का वर्णन है,यहाँ पर इन्हें हैमवती उमा नाम से पुकारा गया है। जहाँ पर वो ब्रह्मविद्या,
परब्रह्म की शक्ति और सांसारिक माँ के रूप में दिखाई गई हैं। और इनको परब्रह्म और देवो
के बीच मे मध्यास्था करते हुए दिखया गया है।
कथा
परब्रह्म ने देवताओं
को अपने द्वारा विजय दिलवाई । परब्रह्म की उस विजय से देवताओं को अहंकार हो गया । वे
समझने लगे कि यह हमारी ही विजय है । हमारी ही महिमा है । यह जानकर परब्रह्म देवताओं
के सामने यक्ष के रूप में प्रकट हुए । और वे (देवता) परब्रह्म को ना जान सके कि ‘यह
यक्ष कौन है’?
तब उन्होंने (देवों ने) अग्नि से कहा कि, ‘हे जातवेद ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । अग्नि ने कहा – ‘बहुत
अच्छा’।
अग्नि यक्ष के समीप गया । परब्रह्म ने अग्नि से पूछा – ‘तू कौन है’ ? अग्नि ने कहा – ‘मैं
अग्नि हूँ, मैं ही जातवेदा हूँ’। ऐसे तुझ अग्नि में क्या सामर्थ्य है ?’ अग्नि
ने कहा – ‘इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे जलाकर भस्म कर सकता हूँ’। तब यक्ष ने एक तिनका
रखकर कहा कि ‘इसे जला’ । अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को जलाने
में समर्थ न होकर वह लौट गया । वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका ।
तब उन्होंने ( देवताओं
ने) वायु से कहा – ‘हे वायु ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । वायु ने कहा – ‘बहुत
अच्छा’
। वायु यक्ष के समीप गया । उसने वायु से पूछा – ‘तू कौन है’ । वायु ने कहा – ‘मैं
वायु हूँ, मैं ही मातरिश्वा हूँ’ । ‘ऐसे तुझ वायु में क्या सामर्थ्य है’ ? वायु ने कहा – ‘इस
पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे ग्रहण कर सकता हूँ’। तब यक्ष ने एक तिनका रखकर कहा कि ‘इसे ग्रहण
कर’
। अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस तिनके को ग्रहण करने में समर्थ न होकर वह लौट गया ।
वह उस यक्ष को जानने में समर्थ न हो सका ।
तब उन्होंने (देवताओं
ने) इन्द्र से कहा – ‘हे मघवन् ! इसे जानो कि यह यक्ष कौन है’ । इन्द्र ने कहा – ‘बहुत
अच्छा’
। इंद्र खुद यक्ष के समीप गया । उसके सामने यक्ष (परब्रह्म) अन्तर्धान हो गए । वह इन्द्र
उसी आकाश में अतिशय शोभायुक्त देवी हेमवती उमा (पार्वती) को देखा और उनके पास आ पहुँचा,
और उनसे पूछा कि ‘यह यक्ष कौन था’ ॥ देवी पार्वती ने स्पष्ट कहा की– वह यक्ष ‘ब्रह्म है’ । ‘उस ब्रह्म की ही विजय
में तुम इस प्रकार महिमान्वित हुए हो’ । तब से ही इन्द्र ने यह जाना कि ‘यह ब्रह्म
है’
। इस प्रकार ये देव – जो कि अग्नि, वायु और इन्द्र हैं, अन्य देवों से श्रेष्ठ हुए
। उन्होंने ही इस ब्रह्म का समीपस्थ स्पर्श किया और उन्होंने ही सबसे पहले देवी के
द्वारा जाना कि ‘यह ब्रह्म है’। इसी प्रकार इन्द्र अन्य सभी देवों से अति श्रेष्ठ
हुआ । उसने ही इस ब्रह्म का सबसे समीपस्थ स्पर्श किया । उसने ही सबसे पहले जाना कि
‘यह ब्रह्म है’॥
इसके अलावा और भी कई
उपनिषदों में देवी पार्वती का वर्णन मिलता है जहाँ देवी कुछ अलग नाम से भी जानी जाती
है।
पूर्वजन्म की कथा
पार्वती पूर्वजन्म में दक्ष
प्रजापति की पुत्री
सती थीं तथा
उस जन्म में
भी वे भगवान
शंकर की ही
पत्नी थीं। सती
ने अपने पिता
दक्ष प्रजापति के
यज्ञ में, अपने
पति का अपमान
न सह पाने
के कारण, स्वयं
को योगाग्नि में
भस्म कर दिया
था। भगवान शंकर
को जब ये
बात पता चली
तो उन्होंने वीरभद्र
के रूप में
दक्ष प्रजापति के
यज्ञ को नष्ट
कर दिया। भगवान
शिव सती के
शव को लेकर
तांडव करने लगे।
उसी समय भगवान
विष्णु ने अपने
सुदर्शन चक्र से
माता सती के
शव के इक्यावन
भाग कर दिया।
जहां जहां माता
सती के ये
ये अंग गिरे
वहां शक्तिपीठों की
स्थापना हुई। अगले
जन्म में माता
सती पार्वती बनकर
हिमनरेश हिमवान के घर
अवतरित हुईं।
पार्वती की तपस्या
पार्वती को भगवान
शिव को पति
के रूप में
प्राप्त करने के
लिये वन में
तपस्या करने चली
गईं। अनेक वर्षों
तक कठोर उपवास
करके घोर तपस्या
की तत्पश्चात वैरागी
भगवान शिव ने
उनसे विवाह करना
स्वीकार किया।
पार्वती की परीक्षा
भगवान शंकर ने पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेने के लिये सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। उन्होंने पार्वती के पास जाकर उसे यह समझाने के अनेक प्रयत्न किये कि शिव जी औघड़, अमंगल वेषधारी और जटाधारी हैं और वे तुम्हारे लिये उपयुक्त वर नहीं हैं। उनके साथ विवाह करके तुम्हें सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। किन्तु पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रहीं। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्हें सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद देकर शिव जी के पास वापस आ गये। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुन कर भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न हुये।
सप्तऋषियों
ने शिव जी
और पार्वती के
विवाह का लग्न
मुहूर्त आदि निश्चित
कर दिया।
शिव जी के साथ विवाह
निश्चित दिन शिव
जी बारात ले
कर हिमालय के
घर आये। वे
बैल पर सवार
थे। उनके एक
हाथ में त्रिशूल
और एक हाथ
में डमरू था।
उनकी बारात में
समस्त देवताओं के
साथ उनके गण
भूत, प्रेत, पिशाच
आदि भी थे।
सारे बाराती नाच
गा रहे थे।
सारे संसार को
प्रसन्न करने वाली
भगवान शिव की
बारात अत्यंत मन
मोहक थी, ब्रह्मा
जी की उपस्थिति
में विवाह समारोह
शुरू हो गया।
शिव और पार्वती
का विवाह उत्तराखंड
के त्रियुगीनारायण में
हुआ जहां नारायण
ने पार्वती का
भाई बनकर सभी
रीति रिवाज निभाये
और ब्रह्मा इस
विवाह के पुरोहित
बने। आज भी
त्रियुगीनारायण मंदिर में वो
अखंड अग्नि कुंड
लगातार प्रज्वलित है। इस
तरह शुभ घड़ी
और शुभ मुहूर्त
में शिव जी
और पार्वती का
विवाह हो गया
और पार्वती को
साथ ले कर
शिव जी अपने
धाम कैलाश पर्वत
पर सुख पूर्वक
रहने लगे।
देवी पार्वती को समर्पित त्यौहार
हरतालिका तीज
हरतालिका तीज को
हरतालिका व्रत या
तीजा भी कहते
हैं। यह व्रत
भाद्रपद मास के
शुक्ल पक्ष की
तृतीया को हस्त
नक्षत्र के दिन
होता है। इस
दिन कुमारी और
सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर
की पूजा करती
हैं। विशेषकर उत्तर
प्रदेश के पूर्वांचल
और बिहार में
मनाया जाने वाला
यह त्योहार करवाचौथ
से भी कठिन
माना जाता है
क्योंकि जहां करवाचौथ
में चांद देखने
के बाद व्रत
तोड़ दिया जाता
है वहीं इस
व्रत में पूरे
दिन निर्जल व्रत
किया जाता है
और अगले दिन
पूजन के पश्चात
ही व्रत तोड़ा
जाता है। सौभाग्यवती
स्त्रियां अपने सुहाग
को अखण्ड बनाए
रखने और अविवाहित
युवतियां मन मुताबिक
वर पाने के
लिए हरितालिका तीज
का व्रत करती
हैं। इस दिन
विशेष रूप से
गौरी−शंकर का
ही पूजन किया
जाता है। इस
दिन व्रत करने
वाली स्त्रियां सूर्योदय
से पूर्व ही
उठ जाती हैं
और नहा धोकर
पूरा श्रृंगार करती
हैं। पूजन के
लिए केले के
पत्तों से मंडप
बनाकर गौरी−शंकर
की प्रतिमा स्थापित
की जाती है।
इसके साथ पार्वती
जी को सुहाग
का सारा सामान
चढ़ाया जाता है।
रात में भजन,
कीर्तन करते हुए
जागरण कर तीन
बार आरती की
जाती है और
शिव पार्वती विवाह
की कथा सुनी
जाती है।[23]
नवरात्रि
पार्वती की श्रद्धा
में एक और
लोकप्रिय त्योहार नवरात्रि है,
जिसमें नौ दिनों
तक उनकी सभी
रूपो की पूजा
की जाती है।
पूर्वी भारत में
विशेष रूप से
बंगाल, ओडिशा, झारखंड और
असम के साथ-साथ भारत
के कई अन्य
हिस्सों जैसे कि
गुजरात में उनके
नौ रूप यानी
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता,
कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री
की पूजा की
जाती है।[24]
और भी कई
स्थानीय त्यौहार है जो
देवी पार्वती को
समर्पित है।




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