शैव
शैव धर्म से जुड़ी जानकारी ग्रंथो अनुसार
(1) भगवान शिव की
पूजा करने वालों
को शैव और
शिव से संबंधित
धर्म को शैवधर्म
कहा जाता है।
(2) शिवलिंग
उपासना का प्रारंभिक
काल हड़प्पा संस्कृति
को माना जाता
है।
(3) ऋग्वेद
में शिव के
लिए रुद्र नामक
देवता का उल्लेख
है।
(4) अथर्ववेद
में शिव को
भव, शर्व, पशुपति
और भूपति कहा
जाता है।
(5) शिवलिंग
की पूजा का
पहला स्पष्ट वर्णन
मत्स्यपुराण में मिलता
है।
(6) महाभारत
के अनुशासन पर्व
से भी शिवलिंग
की पूजा का
वर्णन मिलता है।
(7) वामन पुराण में भगवान
शिव के बारे
में वर्णन मिलता
है
(8) पाशुपत
संप्रदाय शैवों का सबसे
प्राचीन संप्रदाय है। इसके
संस्थापक लकुलीश थे जिन्हें
भगवान शिव के
18 अवतारों में से
एक माना जाता
है।
(9) पाशुपत
संप्रदाय के अनुयायियों
को पंचार्थिक कहा
गया, इस मत
का सैद्धांतिक ग्रंथ
पाशुपत सूत्र है।
(0) कापालिक
संप्रदाय के ईष्ट
देव भैरव थे,
इस सम्प्रदाय का
प्रमुख केंद्र 'शैल' नामक
स्थान था।
(10) कालामुख
संप्रदाय के अनुयायिओं
को शिव पुराण
में महाव्रतधर कहा
जाता है। इस
संप्रदाय के लोग
नर-कपाल में
ही भोजन, जल
और सुरापान करते
थे और शरीर
पर चिता की
भस्म मलते थे
। आज के
समय में लोगों
से निवेदन है
कि ऐसे तौर
तरीके न अपनाएं
। मात्र मंत्रों
से भगवान शिव
का पूजन करने
से ही जीवन
के दुःख , दर्द
, बीमारियां दूर हो
जाते हैं ।
आप सभी से
विनम्र निवेदन है कि
पाशुपत भक्तिविधा आवश्यक नहीं
है कृपया सभी
भक्त सात्विक विधाओं
से ही भगवान
शिव की आराधना
करें । पाशुपत
या कालामुख भक्ति
विधाओं को न
अपनाने से भी
भक्त सात्विक तरीके
से भी भगवान
शिव को प्रसन्न
करके जीवन का
उद्धार बेहतर कर सकता
है और इहलोक
और परलोक दोनों
में ही सद्गति
को प्राप्त करता
है । भगवान
शिव कभी नहीं
कहे कि सुरापान
, मांस खाना आदि
भक्त कर सकते
हैं या उन्हें
करना चाहिए बल्कि
सत्य तथ्य तो
इसके ठीक विपरीत
है , भगवान शिव
की भक्ति में
सुरापान , मांस खाना
..इत्यादि जैसे तामसिक
कार्य वर्जित हैं
। भगवान शिव
की भक्ति शुद्ध
और सच्चे मन
से होनी चाहिए
। किसी भी
पुराण , वेद , ..में ये
वर्णित नहीं है
कि भगवान शिव
या उनका कोई
अवतार या उनका
कोई भक्त शराब
पीता है या
मांस खाता है
या पापाचार करता
है । इसलिए
यदि आप भगवान
शिव की भक्ति
करते हों तो
मांस न खाएं
और शराब न
पिएं ।
(11) लिंगायत
समुदाय दक्षिण में काफी
प्रचलित है ।
शैव ब्राह्मणोंको जंगम
भी कहा जाता
है , इस संप्रदाय
के लोग शिव
लिंग की उपासना
करते है और
गले मे धारण
करते है।
(12) बसव पुराण में लिंगायत
समुदाय के प्रवर्तक
अल्लभ प्रभु और
उनके शिष्य बसव
को बताया गया
है ।
(13) दसवीं
शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ
ने नाथ संप्रदाय
की स्थापना की,
इस संप्रदाय का
व्यापक प्रचार प्रसार बाबा
गोरखनाथ के समय
में हुआ।
(14) दक्षिण
भारत में शैवधर्म
चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और
चोलों के समय
लोकप्रिय रहा।
(15) नायनारों
संतों की संख्या
63 बताई गई है
जिनमें अप्पार, तिरूज्ञान संबंधार
, तिरुनीलकंठ नायनार , कण्णप्पा नायनार
, अमरनीति नायनार , तिरुनावुक्करसर , चंडीश
नायनार , गणनाथ नायनार , नंबिनंदी
नायनार , तिरुमूल नायानार , दंडी
अडिगल , नरसिंह मुनैयर नायनार
, सुंदरमूर्ति नायनार के नाम
उल्लेखनीय है।
(16) पल्लवकाल
में शैव धर्म
का प्रचार प्रसार
नायनारों ने किया।
(17) ऐलेरा
के कैलाश मंदिर
का निर्माण राष्ट्रकूटों
ने करवाया।
(18) चोल शासक राजराज
( प्रथम ) ने तंजावूर
में राजराजेश्वर या
श्री बृहदेश्वर महादेव
मंदिर का निर्माण
करवाया था ।
(19) कुषाण
शासकों की मुद्राओं
पर शिव और
नन्दी का एक
साथ अंकन प्राप्त
होता है।
(20) भगवान शिव के
कुछ
अवतार
हैं:
(i) महाकाल
(iii) भुवनेश
(v) भैरव
(vi) वीरभद्र
(vii) हनुमान
(viii) लोकनाथ
(ix) सुंदरेश्वर
(x) भैरव
(xi) किरात
(xii) सुनट नर्तक
(xiii) भिक्षुवर्य
या भिक्षाटनमूर्ति
(21) भगवान शिव के
कुछ
और
अवतार
हैं:
(i) कपाली
(ii) पिंगल
(iii) भीम
(iv) विरुपाक्ष
(v) विलोहित
(vi) शास्ता
(vii) अजपाद
(viii) आपिर्बुध्य
(ix) शम्भ
(x) चण्ड
(xi) भव
(22) ऋग्वेद
, यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद , श्वेताश्वतर
उपनिषद और इत्यादि
उपनिषद , श्री लिङ्ग
महापुराण , वामन पुराण
, कूर्म पुराण, पद्म पुराण
, श्रीमद्भागवत पुराण , ब्रह्मांड पुराण
, ब्रह्मवैवर्त पुराण , श्रीमद्रामायण , महाभारत
, श्री शिव महापुराण
, वायुपुराण , अग्नि पुराण , श्री
स्कंद महापुराण , आगम
ग्रंथ <--- ये ग्रंथ
शैवों में अत्यधिक
मान्यता प्राप्त हैं ।
दक्षिण भारत में
तिरुमुरई , तिरवेम्पावाई जैसे ग्रंथ
शैवों के लिए
भगवान शिव की
आराधना का स्रोत
हैं । यद्यपि
वेद , पुराणों और
उपनिषदों को भी
दक्षिण भारत में
शैव बहुत मानते
हैं ।
(23) शैव तीर्थ इस प्रकार
हैं:
(i) बनारस
(ii) केदारनाथ
(iii) सोमनाथ
(iv) रामेश्वरम
(v) चिदम्बरम
(vi) अमरनाथ
(vii) कैलाश मानसरोवर
(viii) श्री घृष्णेश्वर
(ix) श्री नागेश्वर
ज्योतिर्लिंग
(x) श्री मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग
(xi) श्री ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
(xii) श्री
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
(xiii) श्री वैद्येश्वर या श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ( इसका सटीक स्थान नहीं ज्ञात हो पाया है कोई मानता है कि महाराष्ट्र के परली में ये ज्योतिर्लिंग है कोई मानता है झारखंड के देवघर में ये ज्योतिर्लिंग है )
(xiv) श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
(xv) श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग आदि
स्थान शैवों में
अत्यधिक मान्यता प्राप्त तीर्थस्थल
हैं ।
(24) शैव सम्प्रदाय के संस्कार
इस प्रकार हैं:
(i) शैव संप्रदाय के लोग
एकेश्वरवादी होते हैं
हालांकि वर्तमान समय में
भगवान विष्णु और
उनके अवतार , देवी
आदिशक्ति , भगवान हनुमान , ..आदि
देवी देवताओं को
भी एक ही
परब्रह्म का रूप
मानकर उनकी पूजा
करते हैं ।
(ii) इसके संन्यासी जटा रखते
हैं।
(iii) इसमें
सिर तो मुंडाते
हैं, लेकिन चोटी
नहीं रखते ।
(iv) यह भगवा वस्त्र
या सफेद वस्त्र
पहनते हैं और
कुछ संप्रदाय वाले
हाथ में कमंडल,
चिमटा रखकर धुनि
भी रमाते हैं
।
(v) शैव चंद्रमान पर आधारित
व्रत उपवास करते
हैं । लेकिन
वर्तमान समय में
और भी कई
पंचांग जैसे शक
संवत , विक्रम संवत , .. आदि
जैसे मानक पंचांगों
का भी पालन
करते हैं ।
(vi) शैव संप्रदाय में समाधि
देने की परंपरा
है।
(vii) शैव मंदिर को शिवालय
कहते हैं जहां
पर आमतौर पर
शिवलिंग के साथ
और भी कई
देवी देवता होते
हैं जिनकी सुबह
और संध्या को
पूजा भी की
जाती है ।
(viii) यह भभूति व चंदन
का तिलक लगाते
हैं , रुद्राक्ष माला
भी धारण करते
हैं ।
(25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है।


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